Monday, August 6, 2012


ये सोचता हूँ जब तू नहीं थी
वक़्त तब भी इसी रफ़्तार से क्या भागता था. 
बारिश की ये आवाज़ क्या तब नर्म थी यूँ ही जो अब है....
और रात भी क्या इतनी ही बेशर्म थी जो ये अब है....!!!

तेरी हसी हर वक़्त कानो  के किसी कोने से टकराती है रहती,
तेरी बातें मदमस्त पानी की तरह स्वछंद बहती...
तेरा गुस्सा न जाने क्यों प्यारा सा लगता है मुझे अब ... 
तेरा छूना तेरी मौजूदगी का भी नहीं मोहताज है अब ...

कुछ है जो पहले सा नहीं नाराज़ है अब...
कुछ तो अलग है, कुछ तो नया है 
कुछ तो तेरे होने से जिंदा हो गया है...!!


Wednesday, March 21, 2012

Wo gaon tha..!!

सड़क किनारे झोपड़ियों के एक गुच्छे को, उन्होंने हमे गाँव बताया...!!!!

सड़क के गड्ढे,
बिजली के खम्बे,
घायल पुलिया,
टूटी नाली,
सूखा गोबर,
नंगा बच्चा,
रास्ता कच्चा,
फर्जी स्कूल,
बोर्ड पे धूल,
बस स्टैंड,
राजू बैंड,
लदा ट्रक्टर,
फिल्म पोस्टर,
बिस्कुट कड़ी,
शेर छाप बीडी,
पुराना हल,
बहता नल,
बांस की छतरी,
पान की टपरी,
बैलगाड़ी,
आंगनवाड़ी,
बस अरे बस नहीं "बस" ..!!!
बस इतना ही था वहां..
और कुछ तो था नहीं,
वो बोले की गाँव है.. और लोगों ने मान लिया .....!!!!!!!

Saturday, February 11, 2012

meri raat...!!!

मेरी रात की आवाज़ बहुत मीठी है,
और इसकी खुशबू में काला जादू है...!!!!
मेरी अपनी नींद से दुश्मनी करा रही है आजकल,
मुझे रोज़ पटा लेती है साली, बहुत चालु है ..!!!

रोज़ सुबह कसम खाता हूँ के आज नहीं मानूंगा,
कितना भी पटाए साली, आज नहीं हारूँगा..!!
लेकिन आसमान की गहराई है उसके अँधेरे में,
तभी तो रोज़ डुबा लेती है , छुपा लेती है , गुमा लेती है......

कमबख्त रोज़ आ जाती है ... फिर बैठी है मेरे तकिये से टिक कर ..........!!!!!!!!!!!!!!!

Saturday, January 28, 2012

दो-दो पंक्तियाँ

पिछले साल दिसम्बर में घटी कुछ राजनितिक घटनाओं पर दो-दो पंक्तियाँ लिखी थीं, शेयर कर रहा हूँ..!!
FDI पे बहेस:-
"हम उनसे अपनी मुफलिसी की दावा खरीदेंगे,
कल पानी खरीदा था .... कल हवा खरीदेंगे ..!!!"

इन्टरनेट सन्सोर्शिप की बात:-
जो मिल गयी है तुमको जम्हूरियत की जलेबी,
तो ये नहीं समझो की शहंशाह मर गए ..!!

६ दिसम्बर अयोध्या कांड की बरसी:-
मनुष्य हैं हम भी अपना वर्चस्व दिखायेंगे,
जिसने रचा सर्वस्व उसको घर दिलाएंगे !!

Wednesday, January 11, 2012

धुंद के बीच खड़े उस पेड़ ने मुझसे कुछ कहा था,

उसने मुझसे वक़्त रोक देने का वादा किया था'
लेकिन में लड़ रहा हूँ उस वादे से,
में लड़ रहा हूँ समय की चाल से,
में लड़ रहा हूँ हर उस ख्याल से,
जो पूछे थे उसने मुझसे, हर उस सवाल से !!!!

लेकिन वो सवाल रुक गए हैं,
और मुझे देख रहे हैं, खुद को दोहरा रहे हैं,
मेरे अन्दर समां रहे हैं
मुझ में रहने वाले "खुद" को दबा रहे हैं ....

इनका जवाब नहीं है मेरे पास
हाँ, लेकन वो पेड़ मेरा दोस्त है, दुश्मन नहीं ,
इसलिए वो मुझसे सवाल मांगता है , जवाब नहीं ..
कोई तर्क नहीं, वक़्त नहीं, रिश्ता नहीं, हिसाब नहीं ...!!!

न जाने उस धुंद के जादू ने क्या किया था,
और उस पेड़ ने मुझसे ये सब क्यों कहा था !!!!!!!!!!!!!!!