Monday, August 6, 2012


ये सोचता हूँ जब तू नहीं थी
वक़्त तब भी इसी रफ़्तार से क्या भागता था. 
बारिश की ये आवाज़ क्या तब नर्म थी यूँ ही जो अब है....
और रात भी क्या इतनी ही बेशर्म थी जो ये अब है....!!!

तेरी हसी हर वक़्त कानो  के किसी कोने से टकराती है रहती,
तेरी बातें मदमस्त पानी की तरह स्वछंद बहती...
तेरा गुस्सा न जाने क्यों प्यारा सा लगता है मुझे अब ... 
तेरा छूना तेरी मौजूदगी का भी नहीं मोहताज है अब ...

कुछ है जो पहले सा नहीं नाराज़ है अब...
कुछ तो अलग है, कुछ तो नया है 
कुछ तो तेरे होने से जिंदा हो गया है...!!


2 comments:

  1. रात फिर से सो गयी है .. वक़्त की रफ़्तार धीमी हो गयी है ..!!

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