Thursday, June 27, 2013

क्या तेरी याद थी ये...


क्या तेरी याद थी ये...
जो लड़खड़ा गयी सांस अचानक..
कुछ कपकपी सी आ गयी..
और सोच ग़ुम गयी कहीं.. 

तुझे सोचता हूँ तो सोच ग़ुम जाती है , 
कही खो जाती है यादों की भीड़ में..!!!
लोगों के चेहरों के बीच घुल जाती है भीड़ का फायेदा उठाकर,
और में ढूँढता रह जाता हूँ उसे तेरे हज़ारों चेहरों के बीच..!!!!

कोई कह गया तू है नहीं, 
पर वक़्त अब भी है वहीँ,
तेरा ज़िक्र किया मैंने खुद से,
और सोच ग़ुम गयी कहीं...!!!!

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